अम्मा बस आशीर्वाद दे दो, तुम्हारा आशीर्वाद रहा तो इस क्षेत्र की सड़के एकदम हीरे के तरह चमकेंगी, पानी के लिये घंटो लाइन ना लगाये का पड़ी ऐसा उन्नत विकास करेंगे ना की अम्मा तुम देखती रह जाओगी।बस तुम्हारा वोट चाहिए फिर अम्मा तुम बस देखती जाओ।
अम्मा- अरे बेटवा हमार आशीर्वाद तो तोहरे साथ ही है, मगर अब चले फिरे की थता ना रही शरीर मा, वोट डाले आ पाई की ना पाई नही कहा जा सकत हैं। पीछे से लगभग 82 साल के चच्चा लाठी के सहारे निकले,शरीर एकदम जर्जर, मांस ऐसा लग रहा था हड्डियाँ चिपका दी गई हो, खासतें हुए बार बार साँसे उखड़ रही थी, परिस्थिति विभत्स थी।
अरे चच्चा अपने बच्चे को आशीर्वाद कह कर नेता जी पैरों में गिर गये,अरे बेटवा -उठो,उठो
चच्चा आपका और अम्मा का बस आशीर्वाद चाहिए सीट निकली निकलाये है ये समझ लेओ। बाबुवा ऐसन मा कहे परेशान करत हो हमार लोगन का शरीर बिल्कुल भी ना काम का रहे, हम हुन तक वोट डाले ना जा पइबे। हम किस दिन खातिर काम अइबे चचा, ये कह के पीछे खड़े आदमी से बोले गुड्डू- चचा-अम्मा को वोट डालने को आने ले जाने की जिम्मा तुम्हारा है।वोटिंग की तारीख भी नजदीक आ गई गुड्डु ने अपनी जिम्मेदारी बाखूबी निभाई
कुछ दिन बाद बुढ़ापे की जद कहे या दवा दारू खान पीन का अभाव चचा की साँसे उखड़ गई सिधार गये वो, अम्मा अकेले बची, एक तो जालिम ये महंगाई, ऊपर से मुहाँ बुढापा कितने दिन बिना पैसो के पार होता
अम्मा ने कहीं से विधवा पेंशन के बारे में सुना था। अपनी वही वोट वाले बेटवा के यहाँ गई बड़ी मुश्किल से,दरवाजे पर खड़े शख्स से पूछा - कहे बेटवा हमका नेता जी से मिले का है, नेता नही हमार बेटवा है वो हमका बस एक बार मिलवाये देओ पहचान जइ हमका,अरे बुढा वो अभी जरूरी काम से गये है, अगले सोमवार को आना। जल्द ही सोमवार भी आया। माता जी अंदर गई ,आगे जाकर गुड्डू मिला अम्मा उसे एकबारगी पहचनने लगी जो नेता जी के लिये जान लगा कर वोट मांग रहा था। गुड्डु ने अम्मा को अनदेखा कर दिया,नेता जी से मिलने अम्मा पहुँची।
नेता जी हिप हॉप वाले सोफे में पसरे बैठे थे, फोन में किसी से हंसी मजाक में व्यस्त थे सामने 15-20 फरियादियो के बीच अम्मा भी खड़ी थी हाथ जोड़े अपने वोट वाले बेटवा के सामने
उस दिन भी अम्मा को खाली हाथ जाना पड़ा
4 दिन बाद अम्मा की फरियाद का नंबर आया ।बेटवा तुम्हारे चचा तो सिधार गये कम से कम हमार विधवा पेंशन का मामला सही करवा देओ, 4 दिन से ई गरमी मा आती जातीं है, शरीर जवाब देत है बच्चा, कुछ पैसा मिल जाइहे तो ये कुछ दिन की जिंदगी पार हुई जई ऐसे तैसे।
नेता जी फोन पर ठाहाको के बीच में अपनी वोट वाली अम्मा की बातें अनसुनी कर रहे थे
फोन कटने के बाद संतरी सें- हाँ इनकी क्या समस्या है पीछे खड़े संतरी से बोले,
सहाब- विधवा पेंशन का मामला है।
नेता जी - तुम अगले शुक्रवार को आना तभी कुछ बता पाएंगे।
गाड़ी निकालवाओ लखनऊ चलना है मंत्री जी से मिलने अपने चेला चपाटी से कहते हुए ठसक से उठ गये नेता जी।वोट वाली अम्मा सभी के बीच में हाथ जोड़े आँखो में करतर आंसू लिये, बेबस उम्मीद से अपने बेटवा के बंगलेनुमा घर से धूल उड़ाती गाड़ियों के पीछे से जा रही थी फिर आने का वादा लिये
अम्मा- अरे बेटवा हमार आशीर्वाद तो तोहरे साथ ही है, मगर अब चले फिरे की थता ना रही शरीर मा, वोट डाले आ पाई की ना पाई नही कहा जा सकत हैं। पीछे से लगभग 82 साल के चच्चा लाठी के सहारे निकले,शरीर एकदम जर्जर, मांस ऐसा लग रहा था हड्डियाँ चिपका दी गई हो, खासतें हुए बार बार साँसे उखड़ रही थी, परिस्थिति विभत्स थी।
अरे चच्चा अपने बच्चे को आशीर्वाद कह कर नेता जी पैरों में गिर गये,अरे बेटवा -उठो,उठो
चच्चा आपका और अम्मा का बस आशीर्वाद चाहिए सीट निकली निकलाये है ये समझ लेओ। बाबुवा ऐसन मा कहे परेशान करत हो हमार लोगन का शरीर बिल्कुल भी ना काम का रहे, हम हुन तक वोट डाले ना जा पइबे। हम किस दिन खातिर काम अइबे चचा, ये कह के पीछे खड़े आदमी से बोले गुड्डू- चचा-अम्मा को वोट डालने को आने ले जाने की जिम्मा तुम्हारा है।वोटिंग की तारीख भी नजदीक आ गई गुड्डु ने अपनी जिम्मेदारी बाखूबी निभाई
कुछ दिन बाद बुढ़ापे की जद कहे या दवा दारू खान पीन का अभाव चचा की साँसे उखड़ गई सिधार गये वो, अम्मा अकेले बची, एक तो जालिम ये महंगाई, ऊपर से मुहाँ बुढापा कितने दिन बिना पैसो के पार होता
अम्मा ने कहीं से विधवा पेंशन के बारे में सुना था। अपनी वही वोट वाले बेटवा के यहाँ गई बड़ी मुश्किल से,दरवाजे पर खड़े शख्स से पूछा - कहे बेटवा हमका नेता जी से मिले का है, नेता नही हमार बेटवा है वो हमका बस एक बार मिलवाये देओ पहचान जइ हमका,अरे बुढा वो अभी जरूरी काम से गये है, अगले सोमवार को आना। जल्द ही सोमवार भी आया। माता जी अंदर गई ,आगे जाकर गुड्डू मिला अम्मा उसे एकबारगी पहचनने लगी जो नेता जी के लिये जान लगा कर वोट मांग रहा था। गुड्डु ने अम्मा को अनदेखा कर दिया,नेता जी से मिलने अम्मा पहुँची।
नेता जी हिप हॉप वाले सोफे में पसरे बैठे थे, फोन में किसी से हंसी मजाक में व्यस्त थे सामने 15-20 फरियादियो के बीच अम्मा भी खड़ी थी हाथ जोड़े अपने वोट वाले बेटवा के सामने
उस दिन भी अम्मा को खाली हाथ जाना पड़ा
4 दिन बाद अम्मा की फरियाद का नंबर आया ।बेटवा तुम्हारे चचा तो सिधार गये कम से कम हमार विधवा पेंशन का मामला सही करवा देओ, 4 दिन से ई गरमी मा आती जातीं है, शरीर जवाब देत है बच्चा, कुछ पैसा मिल जाइहे तो ये कुछ दिन की जिंदगी पार हुई जई ऐसे तैसे।
नेता जी फोन पर ठाहाको के बीच में अपनी वोट वाली अम्मा की बातें अनसुनी कर रहे थे
फोन कटने के बाद संतरी सें- हाँ इनकी क्या समस्या है पीछे खड़े संतरी से बोले,
सहाब- विधवा पेंशन का मामला है।
नेता जी - तुम अगले शुक्रवार को आना तभी कुछ बता पाएंगे।
गाड़ी निकालवाओ लखनऊ चलना है मंत्री जी से मिलने अपने चेला चपाटी से कहते हुए ठसक से उठ गये नेता जी।वोट वाली अम्मा सभी के बीच में हाथ जोड़े आँखो में करतर आंसू लिये, बेबस उम्मीद से अपने बेटवा के बंगलेनुमा घर से धूल उड़ाती गाड़ियों के पीछे से जा रही थी फिर आने का वादा लिये
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