Sunday, April 7, 2019

दुर्गा सप्तसती - 3 अध्याय


महर्षि मेघा ने कहा- महिषासुर की सेना नष्ट होती देख कर, उस सेना का सेनापति चिक्षुर क्रोध में भर देवी के साथ युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा। वह देवी उस पर इस प्रकार बाणों की वर्षा करने लगी, मानो सुमेरु पर्वत पानी की धार बरसा रहा हो | इस प्रकार देवी ने अपने बाणों से उसके बाणों को काट डाला तथा उसके घोड़ों और सारथी को मर दिया, साथ ही उसके धनुष और उसकी अत्यंत ऊँची ध्वजा को भी काटकर नीचे गिरा दिया । उसका धनुष कट जानेके पश्चात उसके शरीर के अंगो को भी अपने बाणों से बींध दिया, धनुष घोड़ों और सारथी के नष्ट हो जाने पर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवी की तरफ आया, उसने अपने तीक्ष्ण धार वाली तलवार से देवी के सिंह के मस्तक पर प्रहार किया और बड़े वेग से देवी की बायीं भुजपर वार किया, किन्तु देवी की बायीं भुजा को छूते ही उस दैत्य की तलवार टूटकर दो टुकड़े हो गई। इससे दैत्य ने क्रोध में भरकर शूल हाथ में लिया और उसे भद्रकाली देवी की ओर फेंका। देवी की ओर आता हुआ वह शूल आकाश से गिरते हुए सूर्य के सामान प्रज्वलित हो उठा। उस शूल को अपनी ओर आते हुए देखकर देवी ने भी शूल छोड़ा और महा असुर के शूल के सौ टुकड़े कर दिए और साथ ही महा असुर के प्राण भी हर लिये, चिक्षुर के मरने पर देवताओं को दुःख देने वाला चामर नमक दैत्य हाथी पर सवार हो कर देवी से लड़ने के लिए आया और उसने आने के साथ ही शक्ति से प्रहार किया, किन्तु देवी ने अपनी हुंकार से ही उसे तोड़कर पृथवी पर डाल दिया ।

 शक्ति को टूटा हुआ देखकर दैत्य ने क्रोध से लाल होकर शूल को चलाया, किन्तु देवी ने उसको भी काट दिया। इतने में देवी का सिंह उछल कर हाथी के मस्तक पर सवार हो गया और दैत्य के साथ बहुत ही तीव्र युद्ध करने लगा, फिर वह दोनों लड़ते हुए हाथी पर से पृथवी पर आ गिरे और दोनों बड़े क्रोध से लड़ने लगे, फिर सिंह बड़े जोर से आकाश की और उछला और जब पृथवी की ओर आया तो अपने पंजे से चामर के सिर धड़ से अलग कर दिया, क्रोध में भरी हुई देवी ने शिला और वृक्ष आदि की चोटों से उदग्र को भी मर दिया। कराल को दांतो, मुक्कों और थप्पड़ो से चूर्ण कर डाला। क्रोध हुए देवी ने गदा के प्रहार से उद्धत दैत्य को मार गिराया, भिन्द्रीपाल से वाष्पकल को, बाणों से ताम्र अंधक को मौत के घाट उतार दिया, तीनों नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्रास्य, उग्रवीर्य और महाहनु नमक राक्षसों को मार गिराया । उसने अपनी तलवार से विडाल नमक दैत्य का सिर काट डाला तथा अपने बाणों से दुधर्र और दुमुख राक्षसों को यमलोक को पहुँचा दिया । इस प्रकार जब महिषासुर ने देखा की देवी ने मेरी सेना को नष्ठ कर दिया है तो वह भैसें का रूप धारण कर देवी के गणों को दुःख देने लगा । उन गणों में कितनों को उसने मुख के प्रहार से, कितनों को खुरों से, कितनों को पूंछ से, कितनों को सींगो से, बहुतों को दौड़ने के वेग से, अनेकों को सिंहनाद से, कितनों को चक्कर देकर और कितनों को श्वास वायु के झोंको से पृथवी पर गिरा दिया। वह दैत्य इस प्रकार गणों की सेना को गिरा देवी के सिंह को मारने के लिए दौड़ा । इस पर देवी को बड़ा गुस्सा आया । उधर दैत्य भी क्रोध में भरकर धरती को खुरों से खोदने लगा तथा सींगों से पर्वतों को उखाड़ उखाड़ कर धरती पर फेंकने लगा और मुख से शब्द करने लगा। महिषासुर के वेग से चक्कर देने के कारण पृथ्वी क्षुब्ध होकर फटने लगी, उसकी पूंछ से टकराकर समुद्र चारों ओर फैलने लगा, हिलते हुए सींगो के आघात से मेघ खण्ड खण्ड हो गए और श्वास से आकाश में उड़ते हुए पर्वत फटने लगे । 

इस तरह क्रोध में भरे राक्षस को देख चण्डिका को भी क्रोध आ गया और वह उसके मारने के लिये क्रोध में भर गई। देवी ने पाश फेंके कर दैत्य को बाँध लिया और उसने बंध जाने पर दैत्य का रूप त्याग दिया और सिंह का रूप बना लिया और ज्यो ही देवी उसका सिर काटने के लिए तैयार हुई कि उसने पुरुष का रूप बना लिया, जोकि हाथ में तलवार लिए हुए था देवी ने तुरन्त ही अपने बाणों के साथ उस पुरुष को उसकी तलवार ढाल सहित बींध डाला, इसके पश्चात वह हाथी के रूप में दिखाई देने लगा और अपने लम्बी सूंड़ से देवी को सिंह को खीचना लगा और गर्जने लगा। देवी ने अपने तलवार से उसकी सूंड़ काट डाली, तब राक्षस ने एक बार फिर भेंसे का रूप धारण कर लिया और पहले की तरह चर-अचर जीवों सहित समस्त त्रिलोकी को व्याकुल करने लगा, इसके पश्चात क्रोध में भरी हुई देवी बारम्बार उत्तम मधु का पान करने लगी और लाल लाल नेत्र करके हंसने लगी। उधर बलवीर्य तथा मद से क्रोध हुआ दैत्य भी गरजने लगा, अपने सींगो से देवी पर पर्वतों को फेंकने लगा। देवी अपने बाणों से उसके फेंके हुए पर्वतों को चूर्ण करती हुई बोली- ओ मूढ़! जब तक मैं मधुपान कर रही हूँ, तब तक तू गर्ज ले और इसके पश्चात मेरे हाथों तेरी मृत्यु हो जाने पर देवता गरजेंगे। महर्षि मेघा ने कहा - यों कहकर देवी उछल कर उस दैत्य पर जा चढ़ी और उसको अपने पैर से दबाकर शूल से उसके गले पर आघात किया, देवी के पैर से दबने पर भी दैत्य अपने दूसरे रूप से अपने मुख से बाहर होने लगा । अभी वह आधा ही बाहर निकाला था कि दैत्य युद्ध करने लगा तो देवी ने अपने तलवार से उसका सिर काट दिया । इसके पश्चात साडी राक्षस- सेना हाहाकार करती हुए वहाँ से भाग खड़ी हुई और सब देवता अत्यंत प्रसन्न हुए तथा ऋषियो महाऋषियो सहित देवी की स्तुति करने लगे, गन्धर्वराज गान करने तथा अप्सराएं नृत्य करने लगीं। 



जय माँ दुर्गा 


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