Tuesday, January 29, 2019

समझौते - पार्ट 2

खूब धूम धाम से शादी हुई चारो तरफ खुशियाँ ही थी बस
लखन बाबू के दोस्त यार भी सभी आये थे हँसी मजाक ठहाको  की कोई कमी ना थी,
भाई लखन भाभी तो अच्छी ढूंढी है मगर ये बोलती नही है कुछ दोस्तो ने मजाक किया
जाओ बकरा तो अब हलाल होने ही वाला है, एक तोहफ़ा ले लो तो फिर हमारी तरफ से अब लखन बाबू
ये लो हम सब की तरफ से छोटा सा गिफ्ट देखो क्या है
एक ईन्वोलप था अंदर
2 टिकट थी मनाली की 5 days 6 nights का पैकेज था सभी कुछ पहले से तय था
अरे ये क्या - लखन बाबू बोले मगर दोस्त कहा कब किसी की सुनते है।
शादी हुई,, वर्षा घर आई सभी ने वर्षा के मान सम्मान में कोई कमी ना की थी।। बुआ लोग बोली भी - लागत है बहुरिया बड़ी उदास है कुछो बोलती ही ना आये। कहो घर छोडे का दुःख होये
वर्षा एकदम घुप बनी रहती ,पूजा हुई बची रश्मे हुई, अगले दिन मनाली की ट्रेन भी थी।।
घर वालो ने bag पैक करने में मदद की
दोनो मनाली के लियेे निकले थे घर से
घर वाले station तक भेजने आये थे दोनो को
First Tier 1 में सीट 22,23 बुक थी
लखन बाबू ने बैग्स रखे ।
वर्षा जी
आपको चाय पीनी है कुछ ले आऊआपके लिये
कुछ नही बोली थी वर्षा
: ट्रेन की सीटी बज गई थी
एक station आगे ट्रेन बढ़ी
एक नया couple आया था उनकी भी हाल फिलहाल शायद शादी हुई थी वो लोग भी मनाली जा रहे थे
बगल वाले कंपार्टमेंट में वो भी थे।
लड़के का शरीर गठीला, रंग गोरा  ऊचाई लखन बाबू से कम थी कुछ ,मगर  पहनावा बातें कुछ वैसे जैसे आज कल लड़कियो को पसंद आती है,,जीन्स और  काले रंग की टी  पहने था जिसमे own boss प्रिंट था।। साथ में जो शायद उसकी पत्नी ही थी शादी को मुश्किल से 3 महीना हुआ होगा अपने दूसरे हनीमून पर आये होंगे।
बीच बीच में उनसे बात हो ही जाती थी कभी चाय के बहाने कभी खाने के,,
उफ़ ये इंडियन रेलवे भी ना कितना कैसा सडा गला मसालेदार कुछ भी दे जाते है - लड़का ट्रेन से नीचे उतरते हुए बोला
लखन बाबू - क्या हुआ भाई, किसे इतना सुनाये जा रहे हो।
लड़का - कुछ नही खास वैसे कहा तक जा रहे हो आप लोग कोई और भी है क्या साथ में???
लखन बाबू - हाँ, हमारा तो प्लान मंसूरी जाने का , साथ में मेरी पत्नी भी अंदर है हमारी नई नई शादी हुई  है।
लड़का - वाओ, ग्रेट  हम भी वही जा रहे है अच्छा हुआ अनजानी जगह साथ वाले लोग मिल जायेंगे
वैसे आप किस होटल में रुके हो
लखन बाबू - होटल पदमिनी निवास में
लड़का - वाह, हमारा भी same है।
ट्रेन की सीटी बज चुकी थी दोनो फिर से ट्रेन में चढ़े अपने अपने कंपार्टमेंट् में गये
वर्षा शायद सो गई थी इसी बीच, लखन बाबू चुपचाप आये वर्षा को    बैग से निकाल कर चादर डाल दी थी और अपना सामने दूसरी तरफ मुह करके सो गये उन्होंने वर्षा को नींद से जगाना ठीक नही समझा
रात युही निकल गई
सुबह लगभग 6 बज रहे था, चाय ले लो, भेल ले लो जैसी आवाजे आ रही थी बाहर से
लखन बाबू की नींद खुली - ट्रेन देहरादून आ चुकी थी मंसूरी वहां से 34 km दूर था क्योंकि direct मंसूरी के लिये कोई ट्रेन नही थी।।
वर्षा जी उठिये, वर्षा जी - चलिये
वर्षा को जगाया उन्होंने
लखन बाबू ने सभी बैग्स उठाए
पहले से ही वो  कपल खड़ा था,
लखन जी अब यहां से चलिये कोई टैक्सी कर लेते है वरना तो ऐसे मुश्किल पडेगी और मनमाने रेट भी लेंगे ये लोग।
ठीक कहा आपने
गाड़ी रोकी गई सभी बैठे गाड़ी ठीक होटल पदमिनी निवास आके ठहरी जो मंसूरी का शानदार होटल था।
अरे इतना सब हो गया - और अभी तो हमारा एक दूसरे से ठीक से परिचय भी नही हुआ - लड़का बोला
लखन बाबू - जी,  सही कहा आपने, ये है मेरी पत्नी वर्षा जी
और मुझसे तो मुलाकात हो ही गई थी
वर्षा - हैलो वर्षा ने इस बार ठीक से देखा था उसे ब्लैक टी, गठीला शरीर,गोरा रंग वो लड़का उसकी आँखो में जैसे भा रहा हो
OHh मीट माई वाइफ लतिका एंड myself अंशू नागपाल मैं जिम ट्रेनर हूँ - वर्षा का ध्यान हटा एकदम से
ठीक है अपने अपने कमरो में चलते है  सफर की थकान भी बहुत है शाम को मिलते है - अंशू बोला।
रूम शानदार था
वर्षा जी आप, फ्रेश हो जाइए जाकर तब तक मैं कुछ खाना ऑर्डर कर देता हूँ, आप अपनी पसंद बता दीजिये अगर कुछ खाने का मन हो या जो मैं ही कुछ मंगा दूँ
वर्षा ने ना बस गर्दन हिलाई हाँ में और चली गई
दोनो फ्रेश हुए खाना खाया और सो गये घड़ी में 7 बज रहे थे
दोनो तैयार होकर नीचे आये
पूरे होटल में ज्यादतर couples ही दिख रहे थे गार्डेन एरिया में बोन फायर लगी थी और हल्का हल्का गिटार की धून पर संगीत बज रहा था दोनो आये वही उन्हे अंशू और लतिका भी मिल गये।।
नजारा काफी रोमांटिक था कोई बोनफायर के सामने कंधे पर सर रख कर बैठा था कोई हथेलियां थामे संगीत में मग्न था, कुछ जोड़े हाथो में वाइन का ग्लास लिये एक दूसरे में  खोये थे, माहौल ऐसा ही था कि नये जोड़े प्यार करने को मजबूर हो जाये और पुराने फिर से प्यार में डूब जाए वही उन्हे अंशू और लतिका दिखे, अंशू हाथो में बियर का ग्लास लिये था लतिका उसके बगल में हाथ पकड़े बैठी थी
अरे आईये लखन जी - अंशू बोला
लखन बाबू और  वर्षा बगल में आकर बैठ गए।।
अरे लखन तुम भी लो पियो यार कैसे ये सूखा सूखा बैठे हो
अरे नही मै नही पीता- लखन बाबू बोले

हा हा हा क्या यार कैसी पुरानी सोच है कि नही पीते - अंशु बोला
उसमे क्या पुरानी सोच, चलो में जाकर ऑरेंज जुस ले आता हूँ - लखन बाबू बोले
वर्षा जी आपके लिये क्या ले आऊ?
एक मोजिटो मिंट बस और कुछ स्नैक्स - कितना खुश हुए लखन बाबू इतना सुन कर वर्षा से आज उसने अपने लिये कुछ बोला था
लतिका जी आपको भी कुछ
- नो थैंक्स लतिका बोली
सब कुछ खुशनुमा,यायावार  और दिलकश चल रहा था
2-3 घंटे बाद कुछ कपल रूम में जाने लगे, मुझे नींद आ  रही
अब चलना चाहिये, लखन बाबू बोले
मगर वर्षा का मन नही था पता नही उसके मन में क्या चल रहा था बहुत अजीब पहेलि बना रखी थी
वर्षा भी बुझे मन से रूम गई
अंदर जाते ही देख के चौक गई बिल्कुल
बात ये थी औरंज जुस के बहाने लखन बाबू ने रूम सर्विस वाले को  हजार का नोट थमाया था और पूरे रूम को सजाने को कह दिया था
कमरा दिलजु था, बेड पर हंस के जोड़े आकर में तोलियो को फोल्ड करके रखा था एक बड़ा सा दिल गुलाब के फूलो से बना था और बीच में ढेर सारी पत्तियाँ सजी थी, पूरा कमरा वैनिला गुलाब की  मिक्स खुशबू से महक रहा था नीचे लाल सफेद गुबारे पड़े थे,हल्की मदम रोशनी पूरे कमरे को रोशन कर रही थीऔर table पर एक कार्ड था जिसपे लिखा था हैप्पी वेडिंग हैप्पी हनीमून
वर्षा इंही सब को देखते देखते खो सी गई थी
तभी पीछे से लखन बाबू आये और वर्षा के बालों को side में करने लगे
वर्षा तेजी से उन्हे झिटकोरते हुए
क्या है ये हटिये समझ नही आता कितनी बार कहा समझ नही आता क्या
शायद इन्ही सब के लिए आपने मेरे सीधे बनके मुझसे शादी की
सपकपा गये लखन बाबू एकदम चुप एकटक वर्षा को देखते रहे समझ ही  नही पा रहे क्या चल रहा आखिर
क्या बात है वर्षा जी कुछ अजीब लग रहा क्या या घर की याद आ रही - लखन बाबू ने ऐसे ही पूछा (एकदम वैसे ही जैसे कोई, 6 साल का बच्चा अपना सौतेली माँ से पूछे माँ क्या तुम मुझे प्यार करती हो?)
कुछ नही हुआ मुझे  कुछ भी नही सोना है मुझे अब वर्षा ने झटके से तकिया और कंबल उठाया और रूम के सोफे में जाकर लेट गई
लखन बाबू आज बहुत असहाय थे ना उन्हे प्यार की सजा मिली ना दुश्मनी की समझ नही आ रहा था क्या  है वर्षा सो गई थी शायद या सोने का नाटक कर रही थी पता नही था कुछ
लखन बाबू 10 कुछ पलो के  लिये एकदम पत्थर बने खड़े रहे
दिल पर साँप लोट  गया था उनके
चुपचाप कमरे से निकले और उसी बाहर  टहलने लगे गुलाबी ठंड थी उन दिनों मनाली मगर उन्हे कोई अहसास ना हुआ वही गार्डन में एक झूला था जो  शायद फैमिली में आये लोगो के लिये था ताकि बच्चे भी एन्जॉय कर सके वही आकर बैठे रहे और खुद से हजारो सवाल पूछ डाले  लखन बाबू को चैन नही मिला और उठकर कमरे में आकर आँखे बंद कर ली मगर नींद कहा थी उन्हे
बस अाँखे बंद थी ह्रदय तो बंजर था जिसे अपने प्रेमी से ठुकराने के बाद और भी धूप लगती है, मन आशंत था।

अगले पार्ट में पढ़े कहानी का अंतिम भाग
साथ बने रहे

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