Wednesday, December 5, 2018

प्यारा सा रिश्ता


कौन सा रिश्ता वो, जो सिर्फ दो पल के लिये हो। कैसे कोई रिश्ता जोड़ ले  जिसका साथ में कोई फ्यूचर ही नहीं? तुम क्यों नहीं समझते मेरी बात या समझना नहीं चाहते- सुरभि ने थोड़ा तेज आवाज में कहां
संजय- तुम क्यों नहीं समझती मेरी बात घर की बहुत ज़िम्मेदारियाँ है मुझपर।
सुरभि- ऐसी कौन सी जिम्मेदारी आ गई तुम पर, पहले तो नहीं थी ऐसी कोई जिम्मेदारी। सच बताओ जिम्मेदारी ही है या कुछ और बात है कोई मिल तो नहीं गई तुम्हें
संजय-नहीं ऐसा कुछ नहीं है, बस मैं भी नहीं चाहता दो पल की खुशी
सुरभि-अगर तुम सच में ये नहीं चाहते तो क्यों चाहते हो की अभी जब तक है साथ में रहे नहीं तो कल को फिर किसी के साथ,, ऐसा तो मैंने कभी नहीं सोचा था। कम से कम तुम कोशिश कर ही सकते हो घर में बात करने की, साथ जिंदगी बितानी की।  इतने भी तो कमजोर नहीं हो तुम और इतना डर किस बात का
संजय- अभी वो वक़्त नहीं आया है कोशिश करने का जब आएगा तो जरूर करूँगा...
लेकिन सुरभि बिना संजय को सुने नॉन स्टॉप बोलती रहती है
सुरभि- अगर मुझसे कोई कमी हो तो बेझिझक कहो  वो मंजूर है, मुझे मुझसे प्रोब्ल्म है फैमिली से है,, लेकिन तुम्हारी नज़र में जब सब अच्छा है तो क्यों तुम ऐसे खेल सकते हो किसी की भी लाइफ के साथ।।
तुम एक जिम्मेदार इंसान क्यों नहीं बनना चाहते
सिर्फ मौज मस्ती के लिये मैं नहीं रख सकती तुमसे रिश्ता और मुझे नही पता था, तुम इतने कमजोर हो।
संजय खामोश था आखिर वो कहता भी तो क्या सुरभि जो कह रही थी सही ही था
सुरभि - बताओ संजय बोलो
आखिर क्यों आज शांत हो
संजय फिर भी कुछ नहीं बोला
सुरभि मगर आज वो सब कुछ कह देना चाहती थी जो उसके दिल में रोज चुभता था।
ठीक है मैं समझ रही हूँ तुम्हारी खामोशी का मतलब सुरभि ने दबी आवाज में कहाँ जैसे आज जो किसी जिम्मेदारी से मुक्ति ले लेगी
ठीक है अगर तुम कोशिश भी नहीं कर पाओगे हमारे फ्यूचर की तो इसे प्यार नहीं कहते।
आज से तुम मुझसे कभी बात नहीं करोगे अगर सच में मेरी खुशी चाहते हो तुम
सुरभि ने इतना कहकर संजय का फोन काट दिया था
सुरभि बहुत रोई,,
(अकसर जब लड़कियां रोती है उसके बाद वो पहले से ज्यादा मजबूत हो जाती हैं और मजबूती से फैसले लेती हैं।)
आज सुरभि भी बहुत मजबूत हो गई थी क्योंकि उसे वो 2 पल का रिश्ता नहीं चाहिये था जो उसे हमेशा का दर्द दे जाये।।
सुरभि अब दिन रात अपने सपनों को पाने में लग गए थी।।। उसे अकसर संजय की याद आती थी मगर वो अपने मन को समझा लेती थी।
करीब 10 दीन बाद अचानक से  एक जाने पहचाने नंबर से call थी
सुरभि किताबों में उलझी थी उसने नंबर ना देखते हुए call उठाई
आवाज़ आई
हैलो
सुरभि
सुरभि खामोश थी- ये संजय था, अच्छे से समझती थी वो ये आवाज
सुरभि ने अपनी बात शुरू की- 'plzz संजय अगर कोई फिर से वहीं बातें हो तो तुम फोन रख सकते हो'
संजय - बिना इधर उधर की बात किये सीधे बोल पड़ता है आज मैंने दीदी को बताया, हमारे बारे में सब, और मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ की धीरे-धीरे सब को बता दूंगा
मुझे नहीं पता की क्या होगा क्या नहीं
मगर मैं अब इतना भी कमजोर नहीं की तुम्हें यहीं छोड़कर चला जाऊँ।।
आखिर हमारी जो सबसे प्यारी चीज है उसे कैसे यूहीं छोड़ दे कोई।।
किसी और पागल के साथ रहने से अच्छा है मैं तुम्हारे ही साथ रह लूँ हमेशा
हँस दिया था दोनों ने,
दोनों तरफ खुशी के आँसू थे!
       "ना जाने करीब आना किसे कहते है,
हमने तो कभी दूर जाना भी ना सिखा। "
संजय और सुरभि ने आज हजारों के लिए एक ऐसी दिलकश कभी ना खत्म होने वाली मर्यादित प्यार की मिसाल कायम की थी, जिसमें प्यार था इंतज़ार था सपने थे, जिंदगी थी और उन दोनों की जिंदगी थी  जो आज हजारों के लिए उदाहरण थी।।।
       

1 comment:

  1. बढ़िया स्टोरी है इसके आगामी अंक का इंतजार रहेगा 😊

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