आदिवासियों की जो दशा आज है वही पहले भी थी उन्हें हमेशा मुख्य धारा से दूर रखा गया, पूरे अधिकार आज भी नहीं मिले, बिरसा का संघर्ष आदिवासियों के लिए हमेशा याद किया जायेगा।।मगर दुखद ये है कि आज भी वही पुरानी बातों को मनाते है आज भी पिछड़े है और उन्हें बिरसा जैसा मार्गदर्शक नहीं मिल पा रहा।झांसी,झारखंड,बिहार, रांची के इलाकों में भगवान के तरीके पूजे जाने वाले बिरसा मुंडा की आज जयंती है,
आइए जानते उनकी जयंती पर कुछ विशेष- 1875 में 15 नवंबर को छोटा नागपुर के पठार में जन्मे आदिवासियों के भगवान का जन्म सुगना और कर्मी के घर हुआ ।
मुंडा का जीवन सदैव आदिवासी लोगों की सेवा में उनके अधिकार दिलाने में ही बिता दिया। उन्होंने हिंदू धर्म, ईसाई धर्म दोनों का सामान अध्ययन किया और अंत में निष्कर्ष निकाला कि आदिवासी ना तो हिंदू धर्म को ना ही ईसाई धर्म को अपना पा रहे है।।
और उनमें तरह-तरह की भ्रांतियां और आडंबर फैले हुए हैं,आदिवासियों का संघर्ष 18 वीं शताब्दी से चला आ रहा था।।
1897 से 1900 के बीच में अनेक युद्ध हुए जिसमें मुंडा और उनके साथियों ने अंग्रेजों की नाक में दम करके रख दिया था।।
बिरसा को 'धरती के बाबा' के नाम से भी जाना जाता है।।।
ब्रिटिश समाज ने उन्हें अपने ऊपर खतरा समझ कर जब वो अपनी सभा संबोधित कर रहे थे तब हमला अचानक बोल दिया गया जिसमें बहुत से बच्चे और महिलाएं मारी गई।
बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।।वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था। जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए। बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है।।
सत सत नमन धरती के बाबा को 😊💐
ReplyDeleteविलक्षण व्यक्तित्व था बिरसा मुण्डा जी का
ReplyDeleteशत शत नमन