सबरीमाला पर आधी आबादी के हक पर फैसला देकर कोर्ट ने एक बेंच मार्क तय किया है जिससे आने वाले समय में महिलाओ के हित के बहुत से फैसले सहर्ष दिए जायेंगे।
अच्छा भी तो है क्यू हम अब तक किसी पर अपनी मर्जी थोपे कि आप इस विशेष जगह आ नही सकते जा नही सकते
पहली बात ये लडाई सिर्फ मंदिर में प्रवेश को लेकर नही थी अगर थी तो महिलाओं को अशुद्ध मानने की थी सिर्फ एक प्राकृतिक कारण जिसकी वजह से सृष्टि चक्र जारी है उसको गलत मानने की थी।
हम चाहे जितना लिख पढ़ ले मॉडर्न बन जाये जब भी महिलाओं की बात आती है उतने ही दबे कुचले विचार होते है वो सिर्फ एक विषय वस्तु ही होती है।
धीरे धीरे बहुत सी बाते खत्म हुई जैसे कि आप रसोई में नही जा सकती आपके छूने से आचार खराब हो जाएगा मगर इसका तो कोई लॉजिक था ही नही ना
अब वो लड़की बेचारी क्या करे जो घर से दूर कहीं पढाई लिखाई या जॉब के लिये हो तो वो या तो खाना ना बनाये अगर बना लिया तो आचार ना निकाले वरना खराब हो जायेगा धीरे धीरे इन सब को घर वालो ने ही मानने ने मना कर दिया कि ऐसा कुछ नही
आज भी बहुत से देश दुनिया के अलग अलग हिस्सो में कुप्रथाये है जिसकी वजह से सिर्फ उन दिनों घर से अलग कहीं उन्हे रहने दिया जाता है।
और किसी का कौमार्य नही नष्ट हो जाएगा महिला के ऐसे में कहीं खुल के आने जाने में जो आपने इतने बंधनों में बांध दिया
अगर किसी लड़की ने 8 साल में कोई मन्नत मानी हो वो 10 साल में पूरी हो गई तो लो अब तो उसे 10-50 साल तक मंदिर के अंदर नही जाना तो क्या भगवान नही नाराज होंगे
पहली बात भगवान ऐसा कुछ कहते नही अच्छा बुरा जो उसकी ही बनाई रचना पर उंगली उठाये ये तो आपने सेट कर दिया कहा जाना क्या करना
ये महिला पर डेपेंड करता है कि उसे कब लगता है कि हम मंदिर जाये ना जाये ये उसका विशेषाधिकार है क्यू सवाल उठाये हम? क्या पता वो उस टाएम में जाये ही ना?
घर में आराम करना पसंद करे
बाकी दिनों में जाये मगर जो अपनी कुरूतियो को भगवान का नाम देना सबसे ज्यादा ये गलत था ।
चर्च में भी भगवान है मानने वालो के लिये वहां ऐसा कोई प्रतिबंध नही
हाजी अली की लड़ाई प्रवेश को लेकर थी कि हम औरतो को नही जाने देंगे मगर फैसला हक में आया महिलाओ के
तो ये संघर्ष की जीत है।
महिलाये, जो चाहती है कि आने वाली पीढी की महिलाये ये बोझा ना ढोये धीरे धीरे मिलेगा हक
बधाई🙂
अच्छा भी तो है क्यू हम अब तक किसी पर अपनी मर्जी थोपे कि आप इस विशेष जगह आ नही सकते जा नही सकते
पहली बात ये लडाई सिर्फ मंदिर में प्रवेश को लेकर नही थी अगर थी तो महिलाओं को अशुद्ध मानने की थी सिर्फ एक प्राकृतिक कारण जिसकी वजह से सृष्टि चक्र जारी है उसको गलत मानने की थी।
हम चाहे जितना लिख पढ़ ले मॉडर्न बन जाये जब भी महिलाओं की बात आती है उतने ही दबे कुचले विचार होते है वो सिर्फ एक विषय वस्तु ही होती है।
धीरे धीरे बहुत सी बाते खत्म हुई जैसे कि आप रसोई में नही जा सकती आपके छूने से आचार खराब हो जाएगा मगर इसका तो कोई लॉजिक था ही नही ना
अब वो लड़की बेचारी क्या करे जो घर से दूर कहीं पढाई लिखाई या जॉब के लिये हो तो वो या तो खाना ना बनाये अगर बना लिया तो आचार ना निकाले वरना खराब हो जायेगा धीरे धीरे इन सब को घर वालो ने ही मानने ने मना कर दिया कि ऐसा कुछ नही
आज भी बहुत से देश दुनिया के अलग अलग हिस्सो में कुप्रथाये है जिसकी वजह से सिर्फ उन दिनों घर से अलग कहीं उन्हे रहने दिया जाता है।
और किसी का कौमार्य नही नष्ट हो जाएगा महिला के ऐसे में कहीं खुल के आने जाने में जो आपने इतने बंधनों में बांध दिया
अगर किसी लड़की ने 8 साल में कोई मन्नत मानी हो वो 10 साल में पूरी हो गई तो लो अब तो उसे 10-50 साल तक मंदिर के अंदर नही जाना तो क्या भगवान नही नाराज होंगे
पहली बात भगवान ऐसा कुछ कहते नही अच्छा बुरा जो उसकी ही बनाई रचना पर उंगली उठाये ये तो आपने सेट कर दिया कहा जाना क्या करना
ये महिला पर डेपेंड करता है कि उसे कब लगता है कि हम मंदिर जाये ना जाये ये उसका विशेषाधिकार है क्यू सवाल उठाये हम? क्या पता वो उस टाएम में जाये ही ना?
घर में आराम करना पसंद करे
बाकी दिनों में जाये मगर जो अपनी कुरूतियो को भगवान का नाम देना सबसे ज्यादा ये गलत था ।
चर्च में भी भगवान है मानने वालो के लिये वहां ऐसा कोई प्रतिबंध नही
हाजी अली की लड़ाई प्रवेश को लेकर थी कि हम औरतो को नही जाने देंगे मगर फैसला हक में आया महिलाओ के
तो ये संघर्ष की जीत है।
महिलाये, जो चाहती है कि आने वाली पीढी की महिलाये ये बोझा ना ढोये धीरे धीरे मिलेगा हक
बधाई🙂
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