Saturday, February 9, 2019

बसंत हमे जीवन के कई अर्थ समझाती है जैसे  कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है शीत ऋतु की तरह जो किसी के लिये अच्छी परंतु किसी के लिये  कष्टदायक होती है जी सड़क किनारे, शहर के छोर पर बिना कपड़ो घरों के रहते है तो सर्दी धीरे धीरे जाने लगती है मौसम अपने यौवन में होता है और जब आप यौवन में होते है। तो प्रकृति अनुसार अच्छे और समाज के नित्य नये आयाम के लिये ही काम करते है क्योंकि जब बच्चे होते है तब भी हमे दुसरी की जरूरत होती है थोड़े बुजुर्ग हुए तो भी सहारो  की।
बसंत संदेश है की जीवन में कोई भी कठिन समय क्यों ना हो सब सही होगा एक दिन चारो ओर खिले फूल, खेतो में आती नई कोपले उल्लास
बसंत का जीवन में विशेष महत्व है, माघ शुक्ल की पंचमी को आज वसंत पंचमी मनाई जा रही है।
इसे ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप मनाया जाता है।
माँ सरस्वती को विद्या, ज्ञान, स्वर, लेखन की देवी कहा किया है। वाणी की देवी भी सरस्वती ही है।

बसंत आगमन तक सभी फसलो में नई कोपले आ जाती है।
नये फूल और भ्रमर चारो और गुन्जयमान होते है
मगर अब  बसंत में वो जोश, हरियाली और फसले नही दिखती जैसे कुछ समय पहले सरसो की पीली फसल से धरती के हर कोने में उल्लास दिखता था हम खुद ही अपनी धरती को बंजर किये दे रहे  है। 
आधुनिकता के नाम पर हम भूल ही गये की प्रकृति के प्रति क्या कर्तव्य है?
चलिये  उसको भी ध्यान में रखिये ताकि आप को इस बात का अफसोस ना रहे और जीवन का  हर बसंत उल्लास से भरा रहे
माँ  सरस्वती को नमन कीजिए और वंदन
नीचे दिए गए कुछ श्लोक हैं जिनको आप आज के दिन मां सरस्वती के लिए पूजा में प्रयोग कर सकते हैं और उनके अर्थ भी
दिये गये है------------
1-- या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
भावार्थ :
जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें ।
2---शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे । सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥
भावार्थ :
शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देनेवाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें ।
3---सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥
भावार्थ :
वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है ।
4---शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे ताम् परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥
भावार्थ :
जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।
शुभ बसंत




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