Thursday, January 24, 2019

समझौते

दूर रहिये समझ नही आता एक ही बात आपको कितनी बार बतानी पढ़ेगी, झटकते हुए वर्षा बोली थी
लखन बाबू वहाँ से दूर जाकर एक किनारे बेंच पर चुपचाप बैठ गये थे।
मिश्रा जी की ने बड़ी धूम धाम से वर्षा की शादी की थी, उनको पहली ही नजर में लखन बाबू पसंद आ गये थे जब वो उनसे मिलने बिचवानी गुप्ता जी के साथ सेवायोजन कार्यालय लड़के को देखने गए थे, आँखो में मोटे लेंस का चश्मा, बड़े खानो की चेकदार शर्ट चेहरे में एक गंभीरता जैसे की पूरा समंदर तबाही मचाने के बाद शांत हो गया हो,, बड़े बाबू के पद पर थे लखन बाबू सेवायोजन दफ्तर में
एक दो लोगो से उन्होंने और पूछा था वही आस पास- क्यों भैया, यहाँ कोई लखन काम करते है क्या?
मुझे अपनी लड़के की स्कॉलरशिप का पता करना है कि क्यूँ नही आ रही बहुत परेशान है कोई कह रहा था जो नये बाबू आये है वो काम जल्दी कर देते है।
हाँ,,जरूर उन्होंने लखन की बात की होगी आप सामने से जाकर दाएँ हाथ पर तीसरे नंबर के बड़े वाले कमरे में जाना वही मिलेंगे वो।
मिश्रा जी-  धन्यवाद भैया,पैसे तो नही मांगेंगे क्योंकि चक्कर लगा लगा कर परेशान हो गये है?
अरे नही कैसी बात कर रहे लखन बाबू इन सब ऐबो से अभी दूर है - सामने वाले ने कहा
अब इतना तो मिश्रा जी जान ही गये थे कि लखन बाबू की क्या छवि है।
और भी उन्होंने ऐसी जाने कितनी बातें पता की
भाई करते भी क्यों ना वर्षा उनकी अकेली बिटिया थी, वर्षा के बाद उनका एक बेटा था जो 4 साल वर्षा से छोटा था।
मगर मिश्रा जी ने कभी लड़के लड़की में भेद नही किया था।।
बहुत चाहते थे वो वर्षा को।  बाबू बनारसी दास से वर्षा हिंदी में B.A. कर रही थी, अंतिम साल था ये।
गुप्ता जी -लडका तो हीरा है, कोई पान पत्ती का नशा भी नहीं, सरकारी बाबू भी है,घर भी ठीक ठाक है सबसे बड़ी बात सज्जन लोग है छोटा परिवार  बिटिया खुश रहेगी।
घर आकर उन्होंने सबको बताया
खुश थे सभी, इतना अच्छा रिश्ता जान कर
मिश्रा जी - बिटिया से भी इस बारे में बात कर ले,  उसकी भी मर्जी जान ले
उनकी पत्नी - उससे क्या पूछना कोई गलत तो देखेंगे नहीं जी,हम उसके लिये कुछ
मिश्रा जी - नही तब भी आज कल के बच्चे है उनकी कुछ पसंद नापसंद होती है
क्या पता कहीं कोई उसे भी पसंद तो नही
कैसे बात कर रहे हैं जी आप कैसे पसंद नही होगा उसे - उनकी पत्नी बोली
मिश्रा जी - अरे वो किसी के बस में नही और मैं ऐसा भी नही की  अपनी ही बिटिया की खुशी कुचल
दू।
वैसे लखन बाबू बहुत अच्छे इंसान है पैसे रुपये की भी कमी नही है  परिवार भी  शांत है,हंसमुख खुश रहेगी वो
बस अब दान दहेज की बात भी हो जाये सही से पता नही कितना दहेज मांगे
3 दिन बाद  लड़के - लड़की की दिखाई का प्रोग्राम बना
मां कहा लिये जा रही हो इतना तैयार करा कर - वर्षा बोली
अरे चल तो ,माँ बताओ तो
अरे बिटिया चलो पहले
नई रोड वाले राधा कृष्ण मंदिर पहुँचे थे सभी लोग
वर्षा कुछ समझ नही पाई तब माँ ने बताया कि तुम्हारे बाबू जी ने एक लड़का पसंद किया है तो आज लड़के वाले तुम्हे देखना चाहते थे,तो
काटो तो खून नही वाली हालत  थी वर्षा की
आँखो का रुका पड़ा सैलाब बस उमड़ने वाला था।
मांँ एक बार पूरी बता तो देती
अब तो बता दिया ना - मिश्रा जी की पत्नी बोली
जाओ मिल लो जाकर लखन जी से मंदिर के पीछे खड़े है।।
वर्षा वही डबडबाई आँखो से,मंदिर के पीछे वाले हिस्से में गई जहा लखन बाबू वहाँ बने तालाब में हंसो के जोड़े को बहुत प्यार से देख रहे थे
वर्षा सामने आकर खड़ी हो गई थी,, 5'2 इंच का शरीर रंग हल्का गेहुआ, चेहरे की बनावट ऐसी की जैसे सोता हुआ बच्चा ,आँखे तो मानो जैसे बस बोल देंगी अभी
उन पर नोक वाला काजल जैसे आज लखन बाबू  जी भर के देख ले तो कैसे ना कत्ल करा ले
वर्षा ने उनकी तरफ नजर उठा कर भी नही देखा
देखा दिखाई चली
मिश्रा जी लड़की तो हमे पसंद है
- लखन बाबू के पिता जी बोले
अब घर आ जाइये तो बाकी बातें भी हो जाये।
जी बहुत बहुत आभार आपका - मिश्रा जी बोले थे
घर आकर -चलो ये लड़की वाली बात हो गई अब आगे देखते है
वर्षा कमरे में जाकर फूट फूटकर रोने लगी मुझे नही करनी शादी अभी नही करनी
2 दिन तक खाना नही खाया उसने कमरे में बस बेड पर औंधे मुह  पड़ी  रही
मिश्रा जी की पत्नी - क्या हुआ बिटिया क्यों ये कर रही हो कुछ शर्म बची है कि नही ऐसे रिश्ते बार बार नही मिलते है।
अगले 2 दिन बाद मिश्रा जी लड़के वालो के घर गये
पर्चा बना बरतौनी खुरना द्वार चार  कलेवा सब मिला कर एक लंबा चिठ्ठा  तैयार किया गया लड़के वालों की तरफ से, बाद में एक कार और जोड दी गई
मिश्रा जी - कार ये तो मेरी जेब से बाहर है इतनी बड़ी नौकरी भी नही है ना कुछ, कैसे करेंगे इतना।
तो अपनी लेवल का रिश्ता देखना था लड़की को सब सुख भी चाहिए और पैसे भी ना खर्च करने पड़े - लखन बाबू के पिता जी बोले
उनके ये शब्द मिश्रा जी के कान में ऐसे चुभे जैसे किसी ने लोहे का गर्म सरिया पिघला के डाल दिया हो
निराश मन से उठे वो जाने लगे - दरवाजे पर लखन बाबू मिल गये काफी कुछ समझ गये
रुकिये आप
पिता जी जिंदगी मेरी है और जरूरी तो नही पैसे से ही हम उसकी जिंदगी खुश रख पाएंगे इतना तो कमाता ही हूँ मैं।
और अब शादी करूँगा तो यही बस- लखन बाबू ने एक ही झटके में जैसे फैसला सुना दिया हो
मिश्रा जी समझ नही पा रहे थे किस जन्म में ऐसा क्या किया था जो ऐसा दामाद मिलने जा रहा था
ऐसे ही मान मनुहार बल  के बाद शादी तय हुई।।

कहानी का अगला भाग जल्द ही अगले पार्ट में,, क्या लखन बाबू का इतनी जल्दी सभी बातों के लिये मान जाना सही था,, आखिर क्या बात थी जो वर्षा को परेशान किये थी,, शादी हुई भी या नही
पढ़े अगले पार्ट में और इतना प्यार देने के लिये शुक्रिया यूँही पढ़ते रहे, पढ़ने की कला को हर उम्र तक जिंदा रखे।।
साथ रहिएगा लखन बाबू और वर्षा के अगले अंक में

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