Sunday, October 28, 2018

मासूम इश्क़-1

मैं चली जाउंगी यहाँ से ,सब मुझे देख के हँसते है सब मजाक बनाते है।।
सही कहते थे सब बस्ती में ये शहरी बाशिन्दे बहुत बुरे होते है
😫😭😭मुझे नही पढ़ना अब आगे अब ही सुशीला मैडम जी से कह के अपना नाम कटा लूँगी चली जाउंगी।।
ऐसा बोलते बोलते स्कूल में पेड़ के नीचे बैठे बैठे बहुत रो रही थी इलायची।
(जैसा नाम था वैसे ही थी इलायची उसकी सादगी की खुश्बू दूर दूर तक फैल जाये।
मगर अब यहां कोई उसे पूछता तक नही था।)
हेलो क्यों रो रही हो तुम
पीछे से आवाज आई
वो कुछ नही बोली
अरे क्यों रो रही हो इतना
और वो लोग तुम्हे नही पहचानते
उनकी दुनिया बस आस पास के लोगों में ही है उनके लिए अच्छा का मतलब बस अच्छे कपड़े और कुछ मेकअप किया हुआ चेहरा है
मत रो उनके लिए विष्णु बोला
इलायची-तुम क्यों आये तुम भी तो उनमें से एक हो।।
विष्णु-नही मैं उनके जैसा नही हु।
इलायची कुछ शांत होती है विष्णु की बात सुन कर उसे ऐसा लगा शहरी भीड़ में कोई तो उसका अपना है जो उसे दिलासा दिलाने आये ।।उसके आँसु रोकने से लिये आया।।
विष्णु-अच्छा क्या मैं तुम्हारे पास बैठ जाऊं ??
इलायची-हूं कहते हुए थोड़ा साइड हो गई।।
विष्णु-अच्छा लो पानी पियो अपनी बोतल को आगे बढ़ाते हुए बोला
इलायची-नही ठीक है।।
दरअसल इलायची नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से आई थी आदम जनजाति की लड़की थी।।
ऐसा इलाका जहाँ अब तक शहरी आबादी बहुत दूर दूर तक नहीं थी
रोशनी के नाम पर लोगो के घरों में लालटेन या ढिबरी,,औरत मर्द बच्चे बूढ़े सबको मिला कर सिर्फ 700 लोग के आस पास थे उसके गाँव में।

9वी की पढ़ाई के लिए सरकारी योजना के तहत उसे वहां से दूर शहर जाने की मिला था
शुरुआत में कोई भी नही तैयार था उसे वहां भेजने के लिए
गाँव वालों ने उन्हें बहुत बार धमकाया,उसके बाबा को बहुत पार पीटा की वो अपनी सयानी हुई लड़की को शहर भेज रहे
मगर इलायची के मां बाबा ने सब सह कर उसे भेजने का फैसला किया
इनसब के लिए सुशीला मैडम जी ने बहुत मदद की थी सुशीला मैडम एक सामाजिक कार्यकर्ता थी जो बस्तर में शिक्षा की अलख जगा रही थी अपनी जान पर खेल कर।
इलायची अब शहर आ चुकी थी
यहाँ का माहौल बिल्कुल अलग था उसने आज से पहले इतनी चमक दमक नही देखी थी
यहाँ क्लास में सब उसका उसके खाने पीने बैठने उठने का मजाक बनाते थे वो हमेशा रोती थी
मगर उस दिन विष्णु ने उसे चुप कराया
विष्णु-लो आज मैं खाने में आलू पूरी लाया हूं खाओगी
इलायची-नही
विष्णु-अरे खा लो मेरी माँ बहुत अच्छा खाना बनाती है।।
दोनों साथ में खाना खाते है
तब तक स्कूल की घण्टी बज गई थी
लंच टाइम पूरा हो गया था
विष्णु-चलो इलायची क्लास में चलते है
इलायची-नही मुझे नही जाना वहां सब मुझे देख कर हँसते है और मजाक बनाते है।।
विष्णु-मैने कहा था ना वो लोग अच्छे नही है।।
चलो अब तुम मेरी दोस्त हो ना चलो
बच्चो के जैसा गुस्साते हुए विष्णु ने कहा
दोनों क्लास की तरफ चल दिये|

2 comments:

  1. आपको एक नए कहानी लिखने के लिए बधाई।
    ऐसे ही आपकी कहानिया,इलाइची की तरह महकी रहे ।।

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