Thursday, January 3, 2019

दूरियाँ- दूर जाके पास आना ही प्यार हैं। ( भाग 3)


मैं तुम्हे शाम को पिक कर लूँगा,ऐसा कहकर दीपक ने फोन रख दिया था।।
दीपक ऑफिस गया, सुधा अपने सभी जरूरी रोजमर्रा के काम निपटाने लगी क्योंकि उसे भी आज दीपक के ऑफिस जाने की उत्सुकता थी।।
करीब, 5 बज रहे थे क्या पहनूँ,क्या पहनूँ?
इन्ही सवालो के जवाब में सुधा ने अब तक पूरा कपबोर्ड निकाल कर बेड में सजा दिया था।।
(आमतौर पर महिलाओं को जब कभी अपने पति या प्रेमी के wokring place में जाना पड़ता हैं तो वो रोज से और भी ज्यादा समय लेती हैं क्योंकि वो अपने को वहाँ  मौजूद सभी दूसरी औरतो से खूबसूरत दिखाना चाहती हैं।।)
सुधा इन्ही सवालों में उलझी थी कि
अचानक सुधा की बाएँ ओर स्तन में तेज दर्द महसूस हुआ।। सीने को चीरने वाला दर्द था जैसे किसी ने वज्रघात कर दिया हों।।
सुधा 10 min तक चुपचाप बैठी रहीं उससे अब कुछ भी नहीं किया जा रहा था, ना ऑफिस जाने की खुशी ना सजने के अरमान, तभी
"हमें  तुमसे प्यार कितना"
की बेल के साथ फोन बजा -सुधि कहा हो जल्दी आओ मैं बाहर तुम्हे लेने आ रहा।
सुधा ने एक कंब्लिफ्लैम निकाल के खानी चाही मगर वो इसके नुकसान से अच्छी तरह वाकिफ थी फिर भी एक घुट पानी पी के उसे खा लिया।।
दीपक की खुशी के लिये उसने जाना ही उचित समझा 
दीपक और सुधा ऑफिस में थे।।
दीपक सबको खुशी से सुधा से introduce करा रहा था- मेरी सलफलता में इनका मुझसे ज्यादा योगदान हैं मेरी लाइफ पार्टनर, मेरी दोस्त, मेरी हमसफ़र सुधा।
सब कुछ अच्छा रहा।।
दोनो घर की ओर चल दिए थे।।
सुधा के घर के बाहर दीपक ने गाडी रोकी,, कार में गाना चल रहा था,
  " तेरे मेरे प्यार नूँ नजर ना लगे रुक जा
    ओ,यारा लग जा गले"
दोनो एक दुसरे में कुछ पल के लिये खो गए थे।।सुधा मुझसे दूर कभी ना जाना कहकर दीपक ने उसका माथा चुम लिया था।। और उत्तर में सुधा ने भी हाँ का जवाब कुछ उसी तरह दिया था

ऐसा कहकर सुधा उतरी और चल दी और दीपक भी अपने फ्लेट की तरफ चल दिया था।
घर जाते ही उसने सुधा को फोन किया
सुधा मुझे लगता हैं अब हम दोनों को जल्दी ही घर में सबको बता के शादी कर लेना चाहिए,, मेरे घर में तो सबको पता ही हैं और मैं तुम्हारे घर में पापा और भाई को मना लूँगा।।
हाँ मुझे भी यहीं लगता हैं।।
दीपक मुझे नींद लगी है सोना चाहिए वैसे भी आज 1 बज चुका है पार्टी से आते आते।।
दोनो सो गये थे
जबकि सुधा को फिर से वहीं दर्द महसूस हुआ था।
सुधा को फिर वहीं अंजाना दर्द हुआ था।
अंजाना इसलिए की उसे अब तक नहीं पता था ये दर्द क्यों है?
मगर वो खुद को बिस्तर के एक कोने में करके सो गई थी।
2-3 दिन ऐसे ही चलता रहा  मगर सुधा बार बार कोई दवा खाके दर्द को दबा देती थी
: इस बीच उसने दीपक से इसका जिक्र तक नहीं किया था। आज भी समाज में महिलाएँ इन सब बीमारियो का इतनी आसानी से जिक्र करने से बचती हैं और यहीं भयावह हो जाता है।
अचानक दुपहर में उसे वहीं अंजान दर्द ऐसा हुआ कि उसके पूरे बदन को चीर रहा था उसके शरीर में दर्द सहने की सभी सीमाए जवाब देने लगी थी किसी लोकल दवा का कोई असर ना कर रहा था।
उसने उसी सुबह 'पंजाब केसरी' के विमेंस हेल्थ कॉलम में एक लेख पढ़ा था उसमे कुछ ऐसा लिखा था या कल महिलाओं की आम समस्या के बारे में कि उसे पढ़कर वो और भी परेशान हो गई थी
आखिर उसने देर करना जरूरी नहीं समझा
और अपनी gyne डॉक्टर अभिलाषा सिंह के पास गई थी।।
जो अपॉलो हॉस्पिटल की बड़ी डॉक्टर थी
वैसे कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी फिर भी मैंने कुछ टेस्ट लिख दिये हैं उनके बाद ही मैं कुछ आपको बता सकती हूँ- डॉक्टर सिंह ने कहां था।
ठीक हैं डॉक्टर- सुधा ने जवाब दिया था एक डर के साथ
तब तक मैं आपको कुछ दवाई लिख देती हूँ जिन्हे खाकर आपको आराम मिलेगा उसके बाद ही नया कुछ बता सकती हूँ- डॉक्टर बोली
सुधा अब अपोलो से बाहर निकल चुकी थी घर पहुँच कर वो अपनी रिपोर्ट के लिये अधीर हुई जा रहीं थी वो जान लेना चाहती थी की वो अंजाना दर्द हैं क्या??
सुधा अपना online dresses का business करती थी घर से ही जिससे उसे ठीक ठाक प्रॉफिट हो ही जाता था।। सुधा चाय के लिये अदरक कूटने लगी उसे पसंद थी,सर्दियों में अदरक वाली चाय
और new dress का कॉलेक्शन देखने में busy हो गई।
इस बीच फोन पर दीपक की 3-4 कॉल्स थी वो ध्यान नहीं दे पाई।।
तभी आचनक उसका फोन पर ध्यान गया
हैलो दीपक - सुधि  कहा हो मैं कबसे फोन कर रहा हूँ
sOrry बाबा मैं ध्यान नहीं दे पाई
अच्छा सुनो। मैंने कुछ प्लान किया हैं  तुम कल मुझे #Rock and soul  कैफे में मिलना
ठीक है दीपक -सुधा ने कहा
कल सुधा को अपनी रिपोर्ट लेने भी जाना था वो समय से 1 घंटा पहले ही डॉक्टर के पास पहुँच चुकी थी।
हेलो डॉक्टर सिंह
बैठिए सुधा डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहाँ जो शायद उसके दर्द से भी ज्यादा उसे  गम्भीर लगा उसे
आपको ब्रेस्ट कैंसर हैं सुधा
सुधा सुन के बेसुध हो गई थी हजारो सवाल जवाब उसके दिमाग में थे,नहीं ये नहीं हो सकता
भगवान इतना भी जालिम कैसे हो सकता हैं अभी तो मुझे जीना हैं।
मुझे नई जिंदगी शुरू करनी हैं माँ को भी तो कैंसर था क्या उन्ही से मुझे भी नहीं नहीं ये नही हो सकता आखिर मैंने किसी का क्या बुरा किया हैं??
कैसे मैंने उन्हे तड़पते हुए देखा हैं तब कैसे उनकी आँखो में जीने की इच्छा देखी थी कैसे वो हर रोज दर्द को दबाने की इतनी दवाई खाती थी जैसे प्लेट भर कर कोई खाना खाता हैं। कैसे वो एक रोज   
उसे पापा को और भाई को छोड़कर चली गई थी वो कहना, रोकना चाहती थी उन्हे। कहना चाहती थी ना जाओ माँ कोई नहीं संभाल पायेगा तुम्हारी जगह होगा भी कौन माँ तुम्हारी जगह मंदिर, मस्जिद, पीर बाबा हर जगह तो हमने माँ के लिये दुआ मांगी थी


कौन हैं माँ की जगह अभी, माँ भी अपनी आँखो में जाने कितनी जिम्मेदारियों का बटवारां करते हुए कि पापा हम दोनो को माँ पापा दोनो का प्यार देंगे,
मुझे छोटी बहन होके भी माँ जैसा प्यार देना हैं भाई को।
ऐसे जाने कितने सवाल करके चली गई थी।।
जाने कितनी इन्ही बातों में सुधा खो गई थी,
5 min में ही उसने, 5000 से ज्यादा चीजे सोच डाली थी।
सुधा सुधा मिस सुधा - डॉक्टर ने झकझोर उसे जैसे वो किसी  काल में चली गई थी
अब ये इतना भी मुश्किल नहीं हैं
आप क्यों इतना परेशान हैं।
आज कल हजारो लोग कैसे इस बीमारी को हरा चुके है नई जिंदगी जी रहे है खुश हैं, कीमोथेरपी से सब संभव है- डॉक्टर ने कहा था।।

इस बीच दीपक का क्या हुआ आखिर दीपक ने कैसे सब सम्भाला, सुधा का आखिर क्या हुआ जानने के लिये इंतज़ार करियेगा और अगला पार्ट जरूर पढ़ियेगा खुशी गम, सहन शक्ति, प्यार विश्वास की मिली हुई कहानी।।

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