हम न बहुत बड़े भुलक्कड़ हो गए है, हम बहुत कुछ वक्त के साथ भूल जाते है, अगर यकीन ना हो तो याद कर लीजिये की हमें लोकपाल याद है अरे चलिए थोड़ा पुराना हो गया है उसको छोड़िए आपको MeToo याद है क्या? हां वही metoo जिसके तहत कई महिलाओं ने आवाज़ उठाई थी अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ, अच्छा क्या आपको अब भी वो सब सुनाई देता है या बस उसके नाम पर जो मज़ाक चल रहा है वही दिख रहा है। हम लोगों ने metoo को एक गंभीर मुद्दे से धीरे-धीरे मज़ाक बना दिया।
Metoo जो कई दिनों तक हर प्रमुख चैनल पेपर सबका ट्रेंड रहा अचानक से वो गायब होना।और बस तैमूर,जीरो का ट्रेलर,पटेल की मूर्ति ये सब खुद में सवाल खड़ा करता है
क्या सभी पीडिताओं को न्याय मिला?
क्या जो भी आरोपी थी वो सच में आरोपी थी?
क्या मुद्दा मज़ह एक ट्रेंड ही था जो वक़्त के साथ गायब हो गया?
वैसे सलाम था उन महिलाओं को जिन्होंने अपनी आवाज बुलंद की और बहुत से लोगो को ये सीखा दिया जो करोगे तो पलट के कभी ना कभी तुम्हे वो वापस मिलेगा ही
मगर जिस तरीके से metoo की लहर का आना
फिर एकदम से ख़ामोशी
ये दुर्भाग्य रहा,सबसे ज्यादा वो बाते सच लगी जब एक ही व्यक्ति पर कई महिलाओं ने एक साथ आरोप लगाए,हमे चाहिए था हम #metoo की धार को और भी तेज करे क्योकि भारत जैसे देश में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी औरतो का एक समय बाद गुस्सा फूटना और उसे सही support ना मिलना दुर्भाग्य रहा हम सब का ऐसे तो ये मुद्दे दबे ही रहेंगे
क्योकि अगर सही तरीके से metoo होता तो एक बदलाव की लहर आती जो बहुत को बचाती और पीड़ित ना बनने देती।मगर वक़्त के साथ इस आंदोलन ने अपनी पहचान ही खो दी और सच्चाई भी नही पता चली
आप भी बताए क्या राय है आपकी??
क्या सही है जो मुझे लग रहा वही आपको भी तो नही????
Metoo जो कई दिनों तक हर प्रमुख चैनल पेपर सबका ट्रेंड रहा अचानक से वो गायब होना।और बस तैमूर,जीरो का ट्रेलर,पटेल की मूर्ति ये सब खुद में सवाल खड़ा करता है
क्या सभी पीडिताओं को न्याय मिला?
क्या जो भी आरोपी थी वो सच में आरोपी थी?
क्या मुद्दा मज़ह एक ट्रेंड ही था जो वक़्त के साथ गायब हो गया?
वैसे सलाम था उन महिलाओं को जिन्होंने अपनी आवाज बुलंद की और बहुत से लोगो को ये सीखा दिया जो करोगे तो पलट के कभी ना कभी तुम्हे वो वापस मिलेगा ही
मगर जिस तरीके से metoo की लहर का आना
फिर एकदम से ख़ामोशी
ये दुर्भाग्य रहा,सबसे ज्यादा वो बाते सच लगी जब एक ही व्यक्ति पर कई महिलाओं ने एक साथ आरोप लगाए,हमे चाहिए था हम #metoo की धार को और भी तेज करे क्योकि भारत जैसे देश में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी औरतो का एक समय बाद गुस्सा फूटना और उसे सही support ना मिलना दुर्भाग्य रहा हम सब का ऐसे तो ये मुद्दे दबे ही रहेंगे
क्योकि अगर सही तरीके से metoo होता तो एक बदलाव की लहर आती जो बहुत को बचाती और पीड़ित ना बनने देती।मगर वक़्त के साथ इस आंदोलन ने अपनी पहचान ही खो दी और सच्चाई भी नही पता चली
आप भी बताए क्या राय है आपकी??
क्या सही है जो मुझे लग रहा वही आपको भी तो नही????
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